
“तीज तिवारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर” क्या आप जानते हैं तीज-गणगौर में क्या है अंतर…?
एक से राजस्थान के त्योहारों की शुरुआत होती है, एक से समापन…
तीज और गणगौर दोनों ही त्योहार में होती है मां पार्वती की पूजा
श्रावण मास में आने वाली तीज कुंवारी युवतियों के लिए तो गणगौर विवाहित युवतियों का पंसदीदा त्योहार
राजस्थान के इन दोनों त्योहारों में होती है सिंजारे की रस्में
विजय श्रीवास्तव।
जयपुर, dusrikhabar.com: राजस्थान प्रदेश यूं तो कई चीजों में भारत के राज्यों से एक दम अलग है। लेकिन यहां के तीज-त्योहार, मेले एवं उत्सवों के लिए राजस्थान सबसे संपन्न राज्यों की श्रेणी में आता है। ऐसा कहा जाता है कि राजस्थान में सबसे ज्यादा त्योहार मनाए जाते हैं और यहां की परंपराएं और रिवाज दुनियाभर के लोगों और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। शायद यही कारण है कि विदेशों में राजस्थान परंपरा को काफी पसंद किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि राजस्थान में त्योहारों और मेलों की शुरुआत तीज से होती है और लगभग छह महीने बाद गणगौर पर्व के साथ राजस्थान में मुख्य त्योहार सम्पन्न हो जाते हैं।
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दरअसल आज हम आपको बताएंगे कि राजस्थान के दो बड़े त्योहारों को कैसे मनाया जाता है। वैसे तो राजस्थान में हर त्योहार महिलाओं के बिना अधूरा है लेकिन फिर भी महिलाओं के लिए खास ये दो त्योहार तीज और गणगौर काफी महत्व रखते हैं। राजस्थान पर्यटन विभाग के उपनिदेशक दलीप सिंह राठौड़ की मानें तो राजस्थान के तीज त्योहारों और परंपरा को लेकर आज भी कहीं कहीं लोगों में असमंजस की स्थिति है। इस बारे में दलीप सिंह राठौड़ ने बताया कि सम्पूर्ण राजस्थान में तीज का त्योहार जब आता है तो श्रावण मास की हरियाली और बरसते हुए मेघ मन को खुशियों से भर देते हैं। राजस्थान में एक कहावत कही जाती है कि “तीज तिवारां बावड़ी ले डूबी गणगौर” इसका मतलब है कि श्रावण की तीज अपने साथ त्योहारों की एक लंबी श्रृंखला लेकर आती है जो 6 महीने के बाद गणगौर के त्योहार के साथ पूरी होती है। श्रावण की तीज हो या नाग पंचमी, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, नवरात्रि और दीपावली आदि बड़े त्योहार इसी समय मनाए जाते हैं।
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राठौड़ ने तीज और गणगौर के त्योहार के बारे में विस्तार से बताया उन्होंने कहा कि तीज का पर्व हमेशा नवयुवतियों के लिए पसंदीदा पर्व रहा है। बचपन में मां-चाची आदि को श्रद्धा से इस पूजन को करते हुए देखती हैं। त्योहार के दिन अच्छे से तैयार होना, पूजा करना, हाथों में मेहंदी लगाना, लहरिया पहनना, आभूषण पहनना, यह महिलाओं के मुख्य कार्य होते हैं। इस दिन घरों में काफी पकवान भी बनाए जाते हैं। फिर भी इस त्योहार की खास मिठाई के तौर पर फीणी तथा घेवर का एक अलग ही महत्व है।

तीज माता की सवारी
तीज को लेकर क्या है मान्यता
तीज के पहले दिन द्वितीया को सिंजारा यानी श्रृंगार के लिए सामान भेजे जाने की परंपरा रही है, विवाहित या विवाह होने वाली कन्याओं के लिए गहने, वस्त्र, मिठाई आदि भेजी जाती हैं। तीज के मौसम में पानी और बरसात को दर्शाते हुए लहरिया की पोशाकें अत्यधिक पहनी जाती हैं और महिलाएं तीज के रूप में मां पार्वती की पूजा-आराधना करती हैं।
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क्यों पूजी जाती हैं गणगौर
वहीं दूसरी तरफ तीज के छह माह बाद यानि होली के बाद प्राचीन त्योहार के रूप में राजस्थान में गणगौर पूजी जाती हैं। गणगौर की पूजा में शिव जी के अवतार के रूप में गण और पार्वती के अवतार के रूप में गौर माता का पूजन किया जाता है। यह होली के बाद से शुरू होकर 18 दिन तक चलता है। इस त्योहार में महिलाएं अपने यहां गणगौर और इसर की पूजा करती हैं।

गणगौर की सवारी
ऐसी मान्यता है कि प्राचीन समय में पार्वती जी ने शंकर भगवान को पति रूप में पाने के लिए तीज के दिन व्रत और तपस्या की थी जिसके फलस्वरूप शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और पार्वतीजी को वरदान मांगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और पार्वती जी का शिव से विवाह हो गया। तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए तीज की पूजा करती हैं।
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प्रदेश में गणगौर का उत्सव मुख्यतः विवाहित महिलाएं अपने वर की लंबी उम्र तथा धन-धान्य आदि के लिए मनाती हैं। गणगौर के व्रत होली के दूसरे दिन से शुरू होकर 18 दिनों तक चलता है और 18 दिन के पश्चात चैत्र शुक्ल तृतीया को इस व्रत का समापन होता है जिसके अवसर पर जयपुर में गणगौर माता की शाही सवारी निकाली जाती है।
कैसे हुई तीज और गणगौर उत्सवों की शुरुआत
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी पार्वती को मन ही मन में भगवान शिव से प्रेम हो गया था, परंतु उनके माता-पिता को शिवजी वर के रूप में पसंद नहीं थे। इसी समय नारद जी भगवान विष्णु का शादी का प्रस्ताव लेकर पर्वतराज हिमालय के पास आए तो हिमालय को इस प्रस्ताव से अति प्रसन्नता हुई और उन्होंने तत्काल स्वीकार कर देवी पार्वती को बताया।
देवी पार्वती इस प्रस्ताव से प्रसन्न नहीं थीं क्योंकि उन्हें तो भगवान शिव से प्रेम था, इसलिए वह अपना घर छोड़कर वन में तपस्या के लिए चली गईं और उन्होंने वहां घोर तपस्या की जिसके कारण भगवान शिव ने श्रावण तृतीया को उन्हें दर्शन देकर वरदान मांगने के लिए कहा। देवी पार्वती ने भगवान शिव को वर के रूप में मांगा, जिसके फलस्वरुप भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की इसलिए श्रावण तीज या हरियाली तीज का पूजन कुंवारी कन्याओं के द्वारा सुयोग्य वर प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
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साथ ही गणगौर के अवसर पर भगवान शिव का विवाह शिवरात्रि यानि की फागुन मास में हो गया था उसके पश्चात चैत्र मास में आने वाले गणगौर में 18 दिनों तक देवी पार्वती तथा भगवान शिव का पूजन किया जाता है। इस पूजन के दिन गणगौर अर्थात गण के रूप में शिव भगवान से और गौर यानि गोरा मां पार्वती दोनों का एक साथ पूजन होता है। अतः यह पूजन विवाहित महिलाओं के द्वारा धन-धान्य तथा अपने पति और परिवार की सुखी होने एवं लंबी आयु के लिए किया जाता है।
इस वर्ष में जयपुर में तीज पर्व का आयोजन
जयपुर में इस वर्ष दिनांक 7 व 8 अगस्त को तीज सवारी का आयोजन किया जाएगा। सिटी पैलेस के द्वारा निकाले जाने वाली शाही सवारी के साथ में पर्यटन विभाग के द्वारा राजस्थानी लोक कलाकारों की प्रस्तुतियां करवाई जाती हैं। साथ ही देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए हिंद होटल के सामने बैठने की व्यवस्था की जाती है।
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इस व्यवस्था में मेहंदी लगाने की फ्री व्यवस्था होती है आने वाले पर्यटक महिलाएं तथा पुरुष भी मेहंदी लगाकर एक याद अपने साथ लेकर जाते हैं। कलाकारों में कालबेलिया नृत्य , कच्ची घोड़ी नृत्य गैर नृत्य बहुरूपिया आदि विभिन्न संस्थाओं के बैंड, पुलिस बैंड आदि दर्शकों का स्वागत तथा मनोरंजन करते हैं सवारी शाम 5:30 बजे से त्रिपोलिया गेट से प्रारंभ होकर धूमधाम के साथ ताल कटोरा तक जाकर पूरी होती है।